Thursday, March 26, 2009

तो ये है महिला सशक्तीकरण ??????

बडा शोर सुनते थे पहलू में दिल का

जो चीरा तो कतरा-ए-खूं भी न निकला.



ज़ब प्रतिभा पाटिल को महामहिम राष्ट्रपति पद हेतु प्रत्याशी बनाया गया था, तो कांग्रेस पार्टी ने मीडिया के सभी चौराहों पर खूब ढोल पीटे थे कि ये है महिला सशक्तीकरण की दिशा में पहला कदम.जिसने भी प्रतिभा पाटिल का विरोध किया उस पर "महिला विरोधी" होने का लेबल चस्पां कर दिया गया. 

चहेते सम्पादकों से अनेक सम्पादकीय लिखवाये गये , मीडियाकर्मियों को शुभेक्षाओं से नवाज़ा गया जिसने प्रतिभा पाटिल के समर्थन में कसीदे पढे.कई तो ऐसे कसीदे लिख पढ कर पद्मश्री,पद्मभूषण आदि की तैय्यारी में अभी से बैठे हैं.तो कुछ राज्यसभा की आस लगाये है.

अभी कल की ही बात है जब श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने महामहिम राष्ट्रपति पद की शपथ लेते समय महिला सशक्तीकरण को ही अपने सम्भाषण का मुख्य मुद्दा बनाया था , लगने लगा था कि बस अब हो गया भरतीय नारी का कल्याण और मिल गयी उसे सदियों की दासता से मुक्ति एक ही झटके में. चढने ही वाली है भारतीय् नारी उत्तंग शिखर पर.

अगले ही दिन दिखा सत्ता का असली रंग.सत्ता का चरित्र क्या होता है ,पता लग गया. मुलम्मा उतर गया.
नारे और वादे क्या होते है और क्या होती है उनकी उपयोगिता, सामने आ गया.
दिल्ली राज्य के पुलिस कमिश्नर की नियुक्ति में जब 1972 बैच की IPS officer Dr. Kiran Bedi वरिष्ठता क्रम मं सबसे आगे दिखीं तो सत्ता को पसीने आ गये.शुरु हो गया क्रम उन बहानों को ढूंढने का जिनके चलते किरन बेदी को किनारे लगाया जा सके.

पहले दिल्ली के कुछ वकीलों से एक बयान दिलवाया गया कि यदि किरन बेदी को यह पद दिया गया तो वे विरोध करेंगे क्यों कि लगभग 20 वर्ष पहले किरन बेदी के नेट्रत्व में किसी जुलूस पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया था. फिर बहाना बनाया गया कि Dr. Kiran Bedi हाल फिल्हाल के वर्षों में active police-role में नही रही हैं. यानि कि हर तरह से योग्यता के प्रश्न को भुलाने का बहाना. 

सता योग्यता नही देखती, सत्ता seniority नही देखती. सत्ता देखती है ठ्कुर सुहाती. You should be politically correct to find favour with powers that be.यदि आपका अपना कोई वज़ूद है,यदि आप के पास स्वतंत्र विचार है,यदि आप में बिना किसी नेता की चप्पू बने अपना नाम स्वयम स्थापित करने की योग्यता है, तो निश्चित ही आप सत्ता के गलियारों के चहेते/ चहेती नही बन सकते. यह चरित्र है सत्ता का.


किरन बेदी का उदाहरण यह सभी सिद्ध करता है.

अब यह जग जाहिर है कि महिला सशक्तीकरण मात्र एक नारा है, नितांत खोखला नारा,जिसे जब चाहे अपनी सुविधानुसार इस्तेमाल किया जा सकता है. 
प्रश्न यह है कि कब तक निरीह जनता भुलावे भरे नारों ,छलावे भरे सपनों को देख कर गुमराह होती रहेगी ?







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